कोसी त्रासदी के दो बरसों से अधिक समय बीत जाने के बाद भी जब कभी भी बिहारीगंज से मधेपुरा के सफ़र पर निकलता हूँ तो यादों के मानस पटल पर महा जलप्रलय का खौफनाक मंज़र उभर कर सामने आ जाता है !टूटे हुए पुल , सडकों के किनारे खायिनुमा गड्ढे , पक्की मकानों के टूटे हुए अवशेष ह्रिदय को विचलित कर अनायास ही यादों के भरते घावों को फिर से कुरेदने लागतें हैं !
१७ अगस्त २००८ को शायद ही इस इलाके के लोगों को पता होगा कि आनेवाला कल उसके भविष्य को की बरस पीछे धकेल देगा ! अगले दिन जैसे ही खबर चली कि नेपाल स्थित कुशहा बांध टूट गया है तथा कोसी अपना रौद्र रूप धारण करते हुए अपनी १५० बरस पुराने रस्ते पर चल पड़ी है , सब ने अपनी जान बचने कि मुहीम शुरू कर दी , लेकिन सब के सब इतने खुशनसीब नहीं थे कि अपनी जान बच सके!
सोलह किलोमीटर की चौराई तथा १५-२० फीट उंचाई लिए कोसी अपने गोद में बसी सभ्यता का अस्तित्व मिटाने निकल पड़ी थी !जन्हा शाम में डिबिया एवं लालटेन की रौशनी में खुशहाल बस्ती दिखाई पड़ रही थी वंहा सुबह होते होते जल प्लावित सफ़ेद धरा एवं उन धाराओं में मिट चुकी जिंदगियां लाशों का रूप लेकर बहते हुए नज़र आ रहे थे ! कोसी के गोद में बसे सुपौल जिला के पूर्वी इलाके - छातापुर ,बीरपुर , पिपरा ,राघोपुर, सिमराही आदि क्षेत्रों में मौत की सफ़ेद चादर तेजी से अपनी पाँव पसरते हुए दक्षिण दिशा (मधेपुरा की ओर ) बढती हुई आ रही थी !
२१ अगस्त २००८ को मैं अपने विद्द्यालय अनिरुद्ध मध्य विद्द्यालय गमैल में था तभी किसी ने खबर दी की कोसी अपनी पुराणी राह पर चलती हुए कोल्हय्पत्ति (मुर्लिगंज़ ) तक आ पहुंची है और काफी तेज गति से बहती हुई आगे बढ़ रही hai! फिर क्या था आनन् फानन में स्कूल में छुट्टी दे दी गई !
१९५६ ई . से लेकर आब तक तो तटबंध कई बार टूटे थे , लेकिन इस बार जिस क्षेत्र को प्रभावित किया था यंहा के लोगों के लिए बढ़ एक अनजान शब्द था !
पिछले १५० बरसों से कोसी ६५-७० किमी पूर्व से पश्चिम की और खिसक चुकी थी इन १६० बरसों से लोग इतने विशाल स्तर पर कोसी की विनाशलीला से लोग अवगत नहीं थे ! न जाने क्यूँ एक पल के लिए ऐसा एहसास होने लगा था कि कंही मुरलीगंज , बिहारीगंज आदि जगह इसी पुरानी धार पे तो नहीं है ? इस बात कि पुष्टि गाँव के एक बुजुर्ग से हुई ! उन्होंने बताया कि - " मुरलीगंज - बिहारीगंज पथ ही करीब १५० बरस पहले 'हाहा धार' के नाम से जाना जाता था और बिहारीगंज बाज़ार नहीं था ! उसके स्थान पर 'गमैल गोला ' खरीद बिक्री का केंद्र था तथा इस केंद्र के बगल में घात लगती थी , जन्हा से नाव में पटुआ , धान , गेंहूँ आदि लाड कर फुलौत के रस्ते नवगछिया (भागलपुर ) के बाज़ार ले जाया जाता था ! बाज़ार के रूप में गमैल से २ किमी दक्षिण बीडी बाज़ार था जहाँ दैनिक उपयोग कि वस्तुएं बिकती थी ! यह बाज़ार छोटे रूप में ही सही आज व् अपने अस्तित्व को बरक़रार रखा है !"
कोसी ने अपनी दिशा बदलने कि विशेष गुण द्वारा आबाद क्षेत्रों को अपने में विलीन करती गई लोग मज़बूरी बस नदी द्वारा छोड़े गए पूर्वी किनारों पर बसते गए और अपने खून-पसीने के द्वारा इन क्षेत्रों को आबाद करते गए !
इसतरह जब मुझे वास्तविक जानकारी मिली तब मैं अपने मित्रजन सोना बाबु को साथ लेकर मोटरसायकिल से कोसी से रु-बा -रु होने कोल्हाय्पत्ति कि और चल परा !बिहारीगंज से १० किमी उत्तर कि और चलकर जब मैं कोल्हय्पत्ति पहुंचा तब मुझे स्थिति कि भयावहता का पता चला और लगा कि आनेवाले वक्त में शायद ही इस क्षेत्र के लोग अपनी जान -अमाल कि रक्षा कर सकें ! लौटते वक्त जब मोहनपुर नाहर पर खड़ा होकर उत्तर कि ओर देखा तो लगा कि मौत कि सफ़ेद चादर बिना कोई दस्तक दिए आगे कि और बढ़ रही थी !
२३ अगस्त को बिहारीगंज - उदाकिसुनगंज पथ पर बिहारीगंज से १ किमी दूर बिशनपुर के समीप नाहर को तोड़कर कोसी कि धार सड़क के ४ फीट ऊपर से बह रही थी ! देखते ही देखते बिहारीगंज - उदाकिशुनगंज सड़क संपर्क टूट चूका था ! उदाकिशुनगंज के मुख्या बाज़ार से पानी ४ फीट कि उंचाई से बह रहा था ! तभी खबर आई कि मुरलीगंज - मधेपुरा पथ पर बलुवा धार के समीप सड़क एवं रेल पुल दोनों बह चूका था साथ ही कई स्थानों पर पानी ५-६ फीट कि उंचाई में बह रहा है! दूसरी ओर बिहारीगंज - ग्वालपाड़ा पथ जो कि नवनिर्मित था , पर दस से बारह जगहों पर ६ फीट ऊपर से पानी बह रहा था और इस बिच में पराने वाले गाँव सरौनी , बेलाही आदि पूरी तरह जलमग्न हो चुके थे! २५ अगस्त २००८ को मुख्यमंत्री का सन्देश रेडियो पर प्रसारित हुआ कि मधेपुरा , ग्वालपाड़ा , मुरलीगंज, बिहारीगंज आदि के वासी कोसी के पेट में हैं अतः जल्द से जल्द अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर चलें जाएँ ! इस बीचगौर फरमाने वाली बात यह थी कि इस क्षेत्र कि जीवन रेखा मानी जाने वाली बिहारीगंज- बनमनखी रेलखंड कोसी के कहर को झेल कर भी किसी तरह लोगों के जीवन को बचा रही थी ! रेडियो प्रसारण के सुनते ही लोग अपना सबकुछ छोड़कर एक मात्र रेलगाड़ी के सहारे निकलने लगे!अफरा-तफरी का ऐसा माहोल बना कि गर्भवती महिलाओं को भी लोग बांस कि सीढियों के सहारे रेलगाड़ी कि छतों पे बिठाने को मजबूर थे !
बिलखता बचपन , बेसुध जवानी और कराहता बुढ़ापा सभी कोसी के इस क्रूर मजाक को झेलने को विवश दिखाई दे रहे थे ! लोगों के लिए ज़िन्दगी के मायने ही बदलते जा रहे थे !बहते हुए लाशों को देख अब आँखें पथराने लगी थी ! कहीं लोग घर के छप्परों (छत ) पे बैठ कर ज़िन्दगी से संघर्ष कर रहे थे तो कहीं उनकी मज़बूरी का फायदा बहार से आये हुए नाविक उठा रहे थे ! हर तरफ मातमी सन्नाटा पसरा हुआ था ! दिन और रात लगभग एक जैसे लग रहे थे फर्क सिर्फ इतना था कि रात में नदीधरा की आवाज़ ऐसी सुनाई दे रही थी कि मानो मौत दहाड़ती हुई अपने आगोस में लेने को एचें लग रही हो!
इस तरह ज्यों ज्यों दिन बीतता गया कोसी अपना रास्ता खुद -ब-खुद बनाते हुए दक्षिण कि औरजिंदगियों को लीलती हुई आगे बढती गई ! अगर कुछ छोड़ा तो वह था बर्बदिओं के निशान , यादों के दर्द जो वक्त -बे- वक्त मानस पटल पर उभर कर सुख चुके घावों को कुरेद जाते हैं !
Friday, October 22, 2010
Saturday, October 16, 2010
introduction of koshi area
भारत की अतिप्राचीन कोसी नदी सभ्यता में आपका अभिनन्दन है ! 18 अगस्त २००८ को कोसी क्षेत्र के लोगो के लिए एक ऐसा अभिशापि दिन आया जिसमे न सिर्फ लाखों लोग कल कलवित हुए बल्कि कोसी क्षेत्र की सभ्यता एवं स्वरुप ही बदल गया! सहरसा ,मधेपुरा ,सुपौल आदि क्षेत्र के हजारों गांव की तकदीरें एवं उनका भविष्य नियति के हाथ का खिलौना बन कर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है !
बढ़ विपदा की दास्ताँ मेरी नज़र में :-
" बही गेला हो आपन गाम ,डूबी गेला सब खेत के धान "
" मरी गेला सब्भई किसान ,केना बचैभो आपन जान "
"भांसी गेला सब घोर मकान , केना के आयता आब मेहमान"
"कते से लाब्भो तोयं सामान, कीरंग बनैभो तोयं पकवान "
"कोसी माय के आईलो फरमान, बनी गेला सब लोग निधान "
"भूख से चिल्का बच्चा बिलखे , लुटी जय औरत के सम्मान"
"लाय ललका ई लाख क जान , ख़तम भय गेला मान अरमान"
"जिनगी पर जे रहा शान उहो बहे गेला अब बेजान"
"आब केना के जैभो गाम , केना के खोज्भो घोर मकान"
"केना उप्जैभो आब तोयं धान, किरंग के रहता तोहर प्राण !"
"वृद्ध रहै या रहै जवान , बच्चा औरत सब हलाकान "
"बढ़ के साथ ई लोर बहै य भरी गेला य आब समसान !!"
बढ़ विपदा की दास्ताँ मेरी नज़र में :-
" बही गेला हो आपन गाम ,डूबी गेला सब खेत के धान "
" मरी गेला सब्भई किसान ,केना बचैभो आपन जान "
"भांसी गेला सब घोर मकान , केना के आयता आब मेहमान"
"कते से लाब्भो तोयं सामान, कीरंग बनैभो तोयं पकवान "
"कोसी माय के आईलो फरमान, बनी गेला सब लोग निधान "
"भूख से चिल्का बच्चा बिलखे , लुटी जय औरत के सम्मान"
"लाय ललका ई लाख क जान , ख़तम भय गेला मान अरमान"
"जिनगी पर जे रहा शान उहो बहे गेला अब बेजान"
"आब केना के जैभो गाम , केना के खोज्भो घोर मकान"
"केना उप्जैभो आब तोयं धान, किरंग के रहता तोहर प्राण !"
"वृद्ध रहै या रहै जवान , बच्चा औरत सब हलाकान "
"बढ़ के साथ ई लोर बहै य भरी गेला य आब समसान !!"
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