Saturday, July 14, 2012

स्वयंसेवी संस्थान "मुक्तिदूत " की स्थापना

बिहारीगंज प्रखंड अंतर्गत गमैल पंचायत में "मुक्तिदूत " नामक  स्वयंसेवी संस्थान  की  स्थापना की गई ! व्यापक उद्देश्य लिए राष्ट्रीय  स्तर के इस गैर सरकारी संगठन का सञ्चालन पंचायत के स्थानीय युवकों के द्वारा किया जा रहा है !


यह संगठन समाज सेवा  से प्रेरित हो  कर कई प्रकार के उद्देश्य अपने आप में समाहित किये हुए हैं ! संस्था द्वारा समाज के दलित  ,शोषित , पिछड़े , असहाय तथा आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के विकास हेतु कई प्रकार के कार्यक्रमों का सञ्चालन , बालश्रमिक ,महिला श्रमिक आदि का उत्थान ,पर्यावरण संरक्षण हेतु जन जागरूकता ,लोगों के बीच  स्वरोजगार अपनाने हेतु कुटीर एवं  लघु उद्द्योगों की स्थापना के लिए सुझाव एवं सहायता , समाज में व्याप्त निरक्षरता एवं बेरोजगारी उन्मूलन हेतु शिक्षण एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था करना आदि कार्य को शामिल किया गया है ,जो इसके समाज सेवा की महत्वाकांक्षा को दर्शाते हैं !

इस संगठन में अध्यक्ष पद पर  श्री संजय झा (गमैल ), सचिव पद पर  श्री अमित कुमार मिश्र (गमैल ) जबकि कोषाध्यक्ष के पद पर श्रीमती अलका झा ने कार्यभार ग्रहण किया है ! सदस्यों में कंचन मिश्र , अनीता देवी , सुनील श्रीवास्तव एवं कई सदस्य शामिल हैं  !

आशा की जाती है कि "मुक्तिदूत " नामक इस संगठन के द्वारा बिहारीगंज के साथ -साथ ,आस-पास के क्षेत्र के लोगों को भी इस संस्था का लाभ  मिलेगा ! 

Wednesday, July 11, 2012

रोजगार के नए अवसर

राज्य के भूमि सुधर विभाग द्वारा अमिन , मुह्रीर  ,लिपिक , कम्प्यूटर ओपेरटर , अनुसेवक आदि पदों के ली संविदा पर नियुक्ति का विज्ञापन दिया गया है !
अधिक जानकारी के लिए इस लिंक को क्लिक करें !
http://lrc.bih.nic.in/docs/adv_10072012162.pdf

Tuesday, July 10, 2012

अरमानों को कुचलता सावन


 रिमझिम फुहारों की वो  झड़ी जब अपनी मनमोहक अदाओं से धरती के सूखे अधरों  पर अमृत वर्षा की श्रीन्खला अपने चरम पर पहुँचा  कर मेरे मनोभावों को भिगोएगी तब शायद मैं एक- आध कविताएँ अपनी रचना कोष में शामिल कर पाऊँ !




यही सोच कर  मेरी आँखे बार-बार आकाश की ओर निहारती हैं ! सजते हुए घटाओं  को देख मैं आनंदित होकर अपने कलम और डायरी को ढूँढने लग जाता हूँ ! पर जाने क्या हुआ इन बादलों को जो बार -बार सज- संवर कर आते तो हैं  ,किन्तु  विरह - वेदना में तड़पती हुई अपनी प्रियतमा 'धरती' को यूँ ही छोड़ किसी धोखेबाज प्रेमी की तरह छल कर वापस लौट जाते हैं ! और इसी के साथ-साथ मेरी भी मनोकामनाएँ  अधूरी रह जाती है !

फिर निराश हो कर समाचार -पत्र और   टी. वी. चैनलों में प्रसारित होने वाले मौसम समाचारों की और ध्यान जाता है !-- " अगले २४ घंटे में पूरे प्रदेश में झमाझम बारिश की संभावना है ! " ऐसी ख़बरों को देख एक बार फिर से मेरा ह्रिदय  उत्साहित होने लगता है ! हालाँकि कई क्षेत्रों में बारिश होती भी है किन्तु बिहारीगंज की धरती  मिलन की आस लिए अपने नसीब पर आंसू ही बहाती है ! फिर, इस सावन में मेरी कामनाओं पर निराशाओं के बदल छाने लगते हैं ! मन में एक अजीब सी बैचेनी होने लगती है कि कहीं मेरी लेखनी अधूरी ही न रह जाये !

लेखनी तो एक रुचि है जो इस सावन न भी हो तो इसका  अगले सावन तक इन्त्जार  किया जा सकता है , किन्तु हमारी अर्थव्यवस्था का मूल आधार 'भारतीय कृषि' का क्या होगा जो पूरी तरह मानसून पर ही निर्भर करती है ? अच्छी बारिश हुई तो फसल पैदावार अच्छी नहीं सूखे कि मार !

बेचारे मन को  लेखनी कार्य से महरूम रहने पर किसी तरह से समझाया था , पर अब यह फिर से बेचैन होने लगा ! बिहार जैसा प्रदेश जहाँ  सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान ३०% से अधिक है इसका क्या होगा ? सबसे अधिक जनसँख्या घनत्व  तथा तीसरे  सबसे अधिक जनसँख्या वाला यह राज्य जो विकास की सीढियों  पर चलना शुरू ही  किया  , क्या इसके पैर फिर से लड़खड़ा जायेंगे ?  पहले से ही महंगाई कि मार  झेल रही जनता के लिए मानसून का दगा देना दोहरी मार साबित नहीं होगी ? बारिश की कमी   से पैदावार कम होंगें,  फिर यह महंगाई डायन सबको  डसना शुरूकर देगी ! बिहार का विकास दर घटेगा साथ में देश का भी  ! यह भी हमारे लिए दोहरी प्रतिकूल परिस्थिति ही होगी ! भारत का विकास दर जो ८.५% से गिर कर  इस वित्तीय वर्ष कि पहली तिमाही में ५.५% पर आ गया है !फलतः विदेशी निवेश कि दर भी घट रही है , महंगाई का आलम जगजाहिर है और ऊपर से मौसम कि ये बेरूखी देश के विकाश दर को निश्चय ही रसातल कि और ले जायेगी  !

मन के ये भाव कहाँ सावन में चला था अपनी लेखनी कार्य को बढ़ाने पर ये एक नै चिंता में डूब गया ! क्या है मानसून ? आखिर क्यूँ ये अपने सही वक्त पर नहीं आया ? क्यूँ ये बदल सज - संवर कर आते तो हैं किन्तु बिन बरसे ही मेरे साथ -साथ लाखों के अरमानों को कुचल कर चले जाते हैं !

जहाँ तक मानसूनी हवाओं का प्रश्न है , सबसे पहले भूगोल्शाश्त्री अलमसूदी ने इसके बारे में बताया !भारतीय उप-महाद्वीप में मौसम परिवर्तन हवाओं कि दिशाओं पर निर्भर करता है ! मानसून की  उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई सिद्धांत प्रचलित हैं -
तापीय प्रभाव सिद्धांत के अनुसार ग्रीष्म मौसम में सूर्य के उत्तरायण होने के बाद अत्यधिक गर्मी के कारण भारतीय उप-महाद्वीप के पशिमोत्तर भाग में अति निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है जबकि हिंद महासागर में उच्च दाब का ! समुद्री उच्च वायुदाब से हवाएं जलवाष्प  लाकर  निम्न दाब की  और आती हैं जिसकी वजह से भारतीय उप-महाद्वीप के ऊपर जमकर वर्षा होती है !
वहीँ एलनीनो सिद्धांत के अनुसार दक्षिण अमेरिका के पेरू तट  पर चलने वाली गर्म जलधारा (एलनीनो ) का प्रभाव भारतीय मानसून पर पड़ता है !इस गर्म जलधारा की  वजह से हिंद महासागर में बनने वाला उच्च वायुदाब  कमजोर हो जाता है ! जिस कारण मानसून का प्रभाव कम हो जाता है !

मेरा मन फिर से एक बार बेचैन होने लगा क्या मेरी कविता पूरी न हो पाने का कारण ये कमबख्त एलनीनो है ?

Friday, July 6, 2012

वेतन पाने के लिए धरना - प्रदर्शन


बिहार सरकार  द्वारा संविदा पर बहाल शिक्षा कर्मियों को   वेतन भुगतान एवं वेतन  बढ़ोतरी का  लाभ  नही  मिलने के कारण  बिहारीगंज  में नियोजित  शिक्षकों द्वारा प्रखंड  संसाधन केंद्र में ताला जड़ कर विरोध किया गया !



 विदित हो कि इन शिक्षकों को बिहार सरकार द्वारा अकुशल मजदूरों के लिए तय की गई न्यूनतम मजदूरी 119 रुपिये प्रतिदिन से थोड़ा सा अधिक 200 रुपिये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी दी जा रही है ! इतनी कम मजदूरी  के  बाद भी इन्हें अपना वेतन समय पर नहीं मिल पाता है जिस कारण इनके परिवार की माली हालत काफी बदतर हो रही है !इन  शिक्षकों से अधिक किस्मत वाले मनरेगा मजदूर हैं जिन्हें कम करने के 15 दिन  बाद मजदूरी गारंटी स्वरूप मिल जाती है , जबकि ये शिक्षक वेतन हेतू बी आर सी कार्यालय के चक्कर लगाते लगाते  थक जाते हैं !


समस्या सिर्फ बिहारीगंज की ही नहीं है , बल्कि बिहार के सभी प्रखंडों की कमोबेश यही स्थिति है ! एक तरफ हमारी सरकार शिक्षा को  बेहतर बनाने की  दिशा में नित नए नए प्रयोग  कर रही है  , जबकि शिक्षण व्यवस्था के मूल घटक (शिक्षक ) को सम्मानजनक वेतन एवं मूलभूत सुविधाएँ मुहैया कराने से भी परहेज कर रही है !


 आये दिन  हमें यह सुनने को मिलता है की अमुक  स्कूल में शिक्षक अनुपस्थित पाए गए !  यह कहना गलत नहीं होगा कि वर्तमान युग  अर्थयुग है !आर्थिक सुरक्षा का प्रश्न इस समय हर किसी के भविष्य के लिए  सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है ! महत्वपूर्ण विचारनीय प्रश्न यह है कि  इस मंहगाई के दौर में  6000 रुपिये से कैसे कोई एक परिवार के लिए महीने भर का बजट बनाये जिसमे भोजन , वस्त्र , आवास , स्वस्थ्य , शिक्षा ,के खर्च को शामिल किया जा सके !


स्वाभाविक है कि  इन परिस्थितियों में शिक्षकों का विद्द्यालय के प्रति आध्यात्मिक एवं मानसिक लगाव नहीं बन पायेगा  , और ऐसी परिस्थिति में सरकार  द्वारा शिक्षा के  क्षेत्र में किये जा रहे सारे प्रयोग ( शिक्षक डायरी , सतत एवं व्यापक मूल्यांकन ) असफल ही साबित होंगे !