रिमझिम फुहारों की वो झड़ी जब अपनी मनमोहक अदाओं से धरती के सूखे अधरों पर अमृत वर्षा की श्रीन्खला
अपने चरम पर पहुँचा कर मेरे मनोभावों को भिगोएगी तब शायद मैं एक- आध कविताएँ
अपनी रचना कोष में शामिल कर पाऊँ !
यही सोच कर मेरी आँखे बार-बार आकाश की ओर निहारती हैं ! सजते हुए घटाओं को
देख मैं आनंदित होकर अपने कलम और डायरी को ढूँढने लग जाता हूँ ! पर जाने
क्या हुआ इन बादलों को जो बार -बार सज- संवर कर आते तो हैं ,किन्तु विरह -
वेदना में तड़पती हुई अपनी प्रियतमा 'धरती' को यूँ ही छोड़ किसी धोखेबाज
प्रेमी की तरह छल कर वापस लौट जाते हैं ! और इसी के साथ-साथ मेरी भी मनोकामनाएँ अधूरी रह जाती है !
फिर निराश हो कर समाचार -पत्र और टी. वी. चैनलों में प्रसारित होने वाले
मौसम समाचारों की और ध्यान जाता है !-- " अगले २४ घंटे में पूरे प्रदेश में
झमाझम बारिश की संभावना है ! " ऐसी ख़बरों को देख एक बार फिर से मेरा
ह्रिदय उत्साहित होने लगता है ! हालाँकि कई क्षेत्रों में बारिश
होती भी है किन्तु बिहारीगंज की धरती मिलन की आस लिए अपने नसीब पर आंसू ही बहाती है ! फिर, इस सावन में मेरी कामनाओं पर निराशाओं के बदल छाने लगते हैं !
मन में एक अजीब सी बैचेनी होने लगती है कि कहीं मेरी लेखनी अधूरी ही न रह
जाये !
लेखनी तो एक रुचि है जो इस सावन न भी हो तो इसका अगले सावन तक इन्त्जार
किया जा सकता है , किन्तु हमारी अर्थव्यवस्था का मूल आधार 'भारतीय कृषि' का
क्या होगा जो पूरी तरह मानसून पर ही निर्भर करती है ? अच्छी बारिश हुई तो
फसल पैदावार अच्छी नहीं सूखे कि मार !
बेचारे मन को लेखनी कार्य से महरूम रहने पर किसी तरह से समझाया था , पर अब
यह फिर से बेचैन होने लगा ! बिहार जैसा प्रदेश जहाँ सकल घरेलू उत्पाद में
कृषि का योगदान ३०% से अधिक है इसका क्या होगा ? सबसे अधिक जनसँख्या घनत्व
तथा तीसरे
सबसे अधिक जनसँख्या वाला यह राज्य जो विकास की सीढियों पर चलना शुरू ही किया , क्या इसके पैर फिर से लड़खड़ा
जायेंगे ? पहले से ही महंगाई कि मार झेल रही जनता के लिए मानसून का दगा
देना दोहरी मार साबित नहीं होगी ? बारिश की कमी से पैदावार कम होंगें, फिर
यह महंगाई डायन सबको डसना शुरूकर देगी ! बिहार का विकास दर घटेगा
साथ में देश का भी ! यह भी हमारे लिए दोहरी प्रतिकूल परिस्थिति ही होगी !
भारत का विकास दर जो ८.५% से गिर कर इस वित्तीय वर्ष कि पहली तिमाही में
५.५% पर आ गया है !फलतः विदेशी निवेश कि दर भी घट रही है , महंगाई का आलम
जगजाहिर है और ऊपर से मौसम कि ये बेरूखी देश के विकाश दर को निश्चय ही
रसातल कि और ले जायेगी !
मन के ये भाव कहाँ सावन में चला था अपनी लेखनी कार्य को बढ़ाने पर ये एक नै
चिंता में डूब गया ! क्या है मानसून ? आखिर क्यूँ ये अपने सही वक्त पर
नहीं आया ? क्यूँ ये बदल सज - संवर कर आते तो हैं किन्तु बिन बरसे ही मेरे
साथ -साथ लाखों के अरमानों को कुचल कर चले जाते हैं !
जहाँ तक मानसूनी हवाओं का प्रश्न है , सबसे पहले भूगोल्शाश्त्री अलमसूदी ने
इसके बारे में बताया !भारतीय उप-महाद्वीप में मौसम परिवर्तन हवाओं कि
दिशाओं पर निर्भर करता है ! मानसून की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई सिद्धांत
प्रचलित हैं -
तापीय प्रभाव सिद्धांत के अनुसार ग्रीष्म मौसम में सूर्य के उत्तरायण होने
के बाद अत्यधिक गर्मी के कारण भारतीय उप-महाद्वीप के पशिमोत्तर भाग में अति
निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है जबकि हिंद महासागर में उच्च दाब का !
समुद्री उच्च वायुदाब से हवाएं जलवाष्प लाकर निम्न दाब की और आती हैं
जिसकी वजह से भारतीय उप-महाद्वीप के ऊपर जमकर वर्षा होती है !
वहीँ एलनीनो सिद्धांत के अनुसार दक्षिण अमेरिका के पेरू तट पर चलने वाली
गर्म जलधारा (एलनीनो ) का प्रभाव भारतीय मानसून पर पड़ता है !इस गर्म
जलधारा की वजह से हिंद महासागर में बनने वाला उच्च वायुदाब कमजोर हो जाता
है ! जिस कारण मानसून का प्रभाव कम हो जाता है !
मेरा मन फिर से एक बार बेचैन होने लगा क्या मेरी कविता पूरी न हो पाने का कारण ये कमबख्त एलनीनो है ?