खुशियों के बसेरे में, मैं भी जीना चाहता हूं,
महसूस करना चाहता हूं बचपन की मौज-मस्ती,
तारों की टिमटिमाहट मैं भी देखना चाहता हूं,
आखिर मैं भी पढ़ना चाहता हूं,
आखिर मैं भी पढ़ना चाहता हूं…………..
World Day Against Child Labour
बचपन जिंदगी का सबसे सुहाना और यागदार सफर होता है. बचपन की मौज-मस्ती को इंसान मरते दम तक याद रखता है. मां की ममता, पिता का स्नेह,
दोस्तों का साथ, स्कूल की मौज शायद इन्हीं यादों में बचपन कब बीत जाता है
कोई जान ही नहीं पाता. लेकिन बचपन की यादें हर किसी के लिए सुहानी नहीं
होतीं. कई लोगों के लिए बचपन एक अभिशाप होता है. जिस बचपन को लोग वरदान
मानते हैं वह अभिशाप कैसे हो सकता है? अगर यह जानना है तो उस बच्चे की
मार्मिक कहानी पर एक नजर अवश्य डालिए जो आपके घर के बाहर के ढाबे या चाय
वाले के यहां बर्तन धोता है, कड़वी बचपन की यादों का स्वाद उस बच्चे को ही
पता होता है जो रेलवे स्टेशनों पर पड़ी प्लास्टिक की बोतलों को इकठ्ठा करता
है.
आज बाल
श्रम निरोध दिवस है. साल के कई सौ दिनों में से एक जिसे समाज के
बुद्धिजीवियों ने उन बच्चों के नाम किया है जो बचपन की मौज मनाने की बजाय
श्रम करते हैं. हम लोग जब भी किसी मीटिंग या सामाजिक स्थल पर बैठे होते हैं
तो समाज के बारे में बड़ी-बड़ी बाते करने से पीछे नहीं हटते. बाल श्रम भी एक
ऐसा ही टॉपिक है जिस पर लोग अक्सर किसी चाय वाले के पास बैठकर लंबा भाषण
देते हैं और फिर आवाज लगाते हैं “ओए छोटू ग्लास ले जा.”
World Day Against Child Labour
बड़ी-बड़ी
बातें, बड़े-बड़े नारे लगाने के बाद भी बाल श्रमिकों की हालत आज भी वैसी ही
है जैसे पहले थी. भारत समेत लगभग सभी विकासशील देश और यहां तक की विकसित
देशों में भी आपको बाल श्रम देखने को मिलेगा. चाय वाले की दुकान हो या कोई
होटल और तो और भारत में तो बाल श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा चूड़ी बनाने,
पटाखा बनाने और अन्य खतरनाक कामों में भी लिप्त है. इन बच्चों को चंद पैसा
देकर इनके मालिक इनसे जरूरत से ज्यादा काम कराते हैं. कम पैसे में यह बच्चे
अच्छी मजदूरी देते हैं और ज्यादा आवाज भी नहीं उठाते, यही वजह है कि ऐसे
कारखानों के मालिक बच्चों को शोषित करने का कोई भी मौका नहीं गंवाते.
World Day Against Child Labour
सैकड़ों
बचपन असमय ही हाथों में कलम के बदले पेट की आग बुझाने के लिए किसी होटल में
जूठन धोने, ईट भट्ठा में ईट ढोने, खेतों में मिट्टी काटने, साइकिल दुकानों
अथवा मोटर गैराजों में मजदूरी करने में बीत रहा है. बाल श्रम अधिनियम
बनने के बाद भी बाल श्रमिकों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है. होटल, ढाबों,
उद्योगों और कारखानों में बाल श्रमिकों को काम करते देखा जा सकता है. जबकि
श्रम विभाग इस ओर मूकदर्शक बना है.
Government report on child
योजना आयोग (भारत सरकार ) के अनुसार वर्तमान समय में लगभग 49 लाख बाल श्रमिक भारत में कार्यरत हैं , जबकि सरकार के पास उपलब्ध गैर सरकारी संगठनो द्वारा दिए गए आंकड़ो के अनुसार यह संख्या 24 करोड़ से ऊपर बताई जा रही है !
बाल श्रम (प्रतिबंध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986
योजना आयोग (भारत सरकार ) के अनुसार वर्तमान समय में लगभग 49 लाख बाल श्रमिक भारत में कार्यरत हैं , जबकि सरकार के पास उपलब्ध गैर सरकारी संगठनो द्वारा दिए गए आंकड़ो के अनुसार यह संख्या 24 करोड़ से ऊपर बताई जा रही है !
बाल श्रम (प्रतिबंध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986
बाल श्रम
(उन्मूलन और विनियमन) अधिनियम, 1986 चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को 18 प्रकार के कारखानों तथा 65 प्रक्रियाओं में नियोजन पर प्रतिबंध लगाया गया है ,और कुछ अन्य
रोज़गारों में उनके काम की स्थितियों को विनियमित करने के लिए अधिनियमित
किया गया था.
बाल श्रम
प्रतिबंधित एवं विनिमय अधिनियम की धारा तीन के अतिरिक्त प्रावधानों पर एक
माह की सजा और एक हजार का जुर्माने का प्रावधान है. लेकिन इसके बाद भी बाल
श्रम रुकने का नाम नहीं ले रहा है. सरकार ने कानून से विरक्त हुए बच्चों के
लिए बाल श्रमिक स्कूल भी खोले हैं लेकिन वह भी निरर्थक ही साबित हो रहे हैं.
श्रम
विभाग अगर कड़ाई से कानून का पालन कराए और श्रम कराने वाले अभिभावकों व काम
लेने वाले मालिकों को समझाने का अभियान छेड़ दे तो कुछ बात बन सकती है.
लेकिन समाज के इस वर्ग की किसी को खास परवाह नहीं है. सरकार के पास देखने
के लिए और भी कई मुद्दे हैं और श्रम विभाग को बाल श्रमिकों से पैसे तो
मिलते नहीं जो उनकी मदद करे. आज बाल श्रमिक निषेध दिवस पर उम्मीद है सरकार
और जनता का ध्यान इस ओर जरूर जाएगा.
विलखता बचपन
छोटे से बचपन पर दण्डों की भरमार
होता था नित्य बचपन पर प्रहार !
न कोई कापी न कोई रेट
छोटा सीना लम्बा सा पेट !
बेचारा 'सुरना' भूख की तंगियों से
आ पड़ा था अपने गाँव की गलियों से!
कभी बर्तन को घिसना कभी चौका लगाना
थक पड़े अगर तो वही दंड पुराना !
बदन में घमौरी आँखों में पानी
ये कैसी विडंबना है ये कैसी है कहानी ...?
छोटे से बचपन पर दण्डों की भरमार
होता था नित्य बचपन पर प्रहार !
न कोई कापी न कोई रेट
छोटा सीना लम्बा सा पेट !
बेचारा 'सुरना' भूख की तंगियों से
आ पड़ा था अपने गाँव की गलियों से!
कभी बर्तन को घिसना कभी चौका लगाना
थक पड़े अगर तो वही दंड पुराना !
बदन में घमौरी आँखों में पानी
ये कैसी विडंबना है ये कैसी है कहानी ...?