Tuesday, June 12, 2012

मत छीनो मुझसे मेरा बचपन ...!

खुशियों के बसेरे में, मैं भी जीना चाहता हूं,

महसूस करना चाहता हूं बचपन की मौज-मस्ती,

तारों की टिमटिमाहट मैं भी देखना चाहता हूं,

आखिर मैं भी पढ़ना चाहता हूं,

आखिर मैं भी पढ़ना चाहता हूं…………..



World Day Against Child Labour

बचपन जिंदगी का सबसे सुहाना और यागदार सफर होता है. बचपन की मौज-मस्ती को इंसान मरते दम तक याद रखता है. मां की ममता, पिता का स्नेह, दोस्तों का साथ, स्कूल की मौज शायद इन्हीं यादों में बचपन कब बीत जाता है कोई जान ही नहीं पाता. लेकिन बचपन की यादें हर किसी के लिए सुहानी नहीं होतीं. कई लोगों के लिए बचपन एक अभिशाप होता है. जिस बचपन को लोग वरदान मानते हैं वह अभिशाप कैसे हो सकता है? अगर यह जानना है तो उस बच्चे की मार्मिक कहानी पर एक नजर अवश्य डालिए जो आपके घर के बाहर के ढाबे या चाय वाले के यहां बर्तन धोता है, कड़वी बचपन की यादों का स्वाद उस बच्चे को ही पता होता है जो रेलवे स्टेशनों पर पड़ी प्लास्टिक की बोतलों को इकठ्ठा करता है.

Chil LabourWorld Day Against Child Labour

आज बाल श्रम निरोध दिवस है. साल के कई सौ दिनों में से एक जिसे समाज के बुद्धिजीवियों ने उन बच्चों के नाम किया है जो बचपन की मौज मनाने की बजाय श्रम करते हैं. हम लोग जब भी किसी मीटिंग या सामाजिक स्थल पर बैठे होते हैं तो समाज के बारे में बड़ी-बड़ी बाते करने से पीछे नहीं हटते. बाल श्रम भी एक ऐसा ही टॉपिक है जिस पर लोग अक्सर किसी चाय वाले के पास बैठकर लंबा भाषण देते हैं और फिर आवाज लगाते हैं “ओए छोटू ग्लास ले जा.”

World Day Against Child Labour

बड़ी-बड़ी बातें, बड़े-बड़े नारे लगाने के बाद भी बाल श्रमिकों की हालत आज भी वैसी ही है जैसे पहले थी. भारत समेत लगभग सभी विकासशील देश और यहां तक की विकसित देशों में भी आपको बाल श्रम देखने को मिलेगा. चाय वाले की दुकान हो या कोई होटल और तो और भारत में तो बाल श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा चूड़ी बनाने, पटाखा बनाने और अन्य खतरनाक कामों में भी लिप्त है. इन बच्चों को चंद पैसा देकर इनके मालिक इनसे जरूरत से ज्यादा काम कराते हैं. कम पैसे में यह बच्चे अच्छी मजदूरी देते हैं और ज्यादा आवाज भी नहीं उठाते, यही वजह है कि ऐसे कारखानों के मालिक बच्चों को शोषित करने का कोई भी मौका नहीं गंवाते.

World Day Against Child Labour

सैकड़ों बचपन असमय ही हाथों में कलम के बदले पेट की आग बुझाने के लिए किसी होटल में जूठन धोने, ईट भट्ठा में ईट ढोने, खेतों में मिट्टी काटने, साइकिल दुकानों अथवा मोटर गैराजों में मजदूरी करने में बीत रहा है. बाल श्रम अधिनियम बनने के बाद भी बाल श्रमिकों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है. होटल, ढाबों, उद्योगों और कारखानों में बाल श्रमिकों को काम करते देखा जा सकता है. जबकि श्रम विभाग इस ओर मूकदर्शक बना है.


Government report on child
योजना आयोग (भारत सरकार ) के  अनुसार वर्तमान समय में लगभग 49 लाख बाल श्रमिक भारत में कार्यरत हैं , जबकि सरकार के पास उपलब्ध गैर सरकारी संगठनो द्वारा दिए गए आंकड़ो के अनुसार यह संख्या 24 करोड़ से ऊपर बताई जा रही है !
 

बाल श्रम (प्रतिबंध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986

बाल श्रम (उन्‍मूलन और विनियमन) अधिनियम, 1986 चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों को 18 प्रकार के कारखानों तथा 65 प्रक्रियाओं में नियोजन पर प्रतिबंध लगाया गया  है ,और कुछ अन्‍य रोज़गारों में उनके काम की स्थितियों को विनियमित करने के लिए अधिनियमित किया गया था.


बाल श्रम प्रतिबंधित एवं विनिमय अधिनियम की धारा तीन के अतिरिक्त प्रावधानों पर एक माह की सजा और एक हजार का जुर्माने का प्रावधान है. लेकिन इसके बाद भी बाल श्रम रुकने का नाम नहीं ले रहा है. सरकार ने कानून से विरक्त हुए बच्चों के लिए बाल श्रमिक स्कूल भी खोले हैं लेकिन वह भी निरर्थक ही साबित हो रहे हैं.


श्रम विभाग अगर कड़ाई से कानून का पालन कराए और श्रम कराने वाले अभिभावकों व काम लेने वाले मालिकों को समझाने का अभियान छेड़ दे तो कुछ बात बन सकती है. लेकिन समाज के इस वर्ग की किसी को खास परवाह नहीं है. सरकार के पास देखने के लिए और भी कई मुद्दे हैं और श्रम विभाग को बाल श्रमिकों से पैसे तो मिलते नहीं जो उनकी मदद करे. आज बाल श्रमिक निषेध दिवस पर उम्मीद है सरकार और जनता का ध्यान इस ओर जरूर जाएगा.
विलखता बचपन
छोटे से बचपन पर दण्डों की भरमार
होता था नित्य बचपन पर प्रहार !
न कोई कापी न कोई रेट
छोटा सीना लम्बा सा पेट !
बेचारा 'सुरना' भूख की तंगियों से
आ पड़ा था अपने गाँव की गलियों से!
कभी बर्तन को घिसना कभी चौका लगाना
थक पड़े अगर तो वही दंड पुराना !
बदन में घमौरी आँखों में पानी
ये कैसी विडंबना है ये कैसी है कहानी ...?







Monday, June 4, 2012

मेरे बच्चे अभी बहुत छोटे हैं लेकिन उनके साथ बिताए हर पल मेरी आंखों के सामने आ गए. तीन महीने पहले बुखार से तप रहे तीन साल के बेटे की दवाई लाने के लिए रात के एक बजे अपने घर से पंद्रह किलोमीटर दूर जाना, अंजानी सडकों में कैमिस्टों की खुली दुकानें टटोलते खाली हाथ वापस आना और रातभर गीली पट्टी करते हुए सुबह डॉक्टर के क्लीनिक खुलने का इंतज़ार करना......
ऐसे में मुझे बरबस मेरे पिता याद आते रहे… और मम्मी का मुझे अक्सर यह बतलाना कि कैसे बचपन में मेरी सलामती के लिए दोनों रात-रात भर जागते रहे
थे......

और फिर मुझे बार-बार यह भी याद आता रहा कि न जाने कितने ही मौकों पर मैंने जानते हुए उनका दिल दुखाया… अनजाने की तो कोई गिनती भी न होगी.

आप शायद समझ रहे होंगे मेरे भीतर क्या चल रहा है. एक दिन मैं भी बूढ़ा हो जाऊंगा और उस समय के लिए मैं अपने बच्चों से आज यही कहना चाहूंगा :-

“मेरे प्यारे बच्चों,

जिस दिन तुम्हें यह लगे कि मैं बूढ़ा हो गया हूं, तुम खुद में थोड़ा धीरज लाना और मुझे समझने की कोशिश करना…

जब खाना खाते समय मुझसे कुछ गिर जाए… जब मुझसे कपड़े सहेजते न बनें… तो थोड़ा सब्र करना, मेरे बच्चों…और उन दिनों को याद करना जब मैंने तुम्हें
यह सब सिखाने में न जाने कितना समय लगाया था.

मैं कभी एक ही बात को कई बार दोहराने लगूं तो मुझे टोकना मत. मेरी बातें सुनना. जब तुम बहुत छोटे थे तब  हर रात मुझे एक ही कहानी बार-बार सुनाने
के लिए कहते थे, और मैं ऐसा ही करता था जब तक तुम्हें नींद नहीं आ जाती थी.

अगर मैं कभी अपने को ठीक से साफ न कर पाऊं तो मुझे डांटना नहीं… यह न कहना कि यह कितने शर्म की बात है…तुम्हें याद है जब तुम छोटे थे तब तुम्हें अच्छे से नहलाने के लिए मुझे नित नए जतन करने पड़ते थे?

हर पल कितना कुछ बदलता जा रहा है. यदि मैं नया रिमोट, मोबाइल, या कम्प्यूटर चलाना न सीख पाऊं तो मुझपर हंसना मत… थोड़ा वक़्त दे देना… शायद मुझे यह सब चलाना आ जाए.

मैं तुम्हें ज़िंदगी भर कितना कुछ सिखाता रहा…अच्छे से खाओ, ठीक से कपड़े पहनो, बेहतर इंसान बनो, हर मुश्किल का डटकर सामना करो… याद है न?

बढ़ती उम्र के कारण यदि मेरी याददाश्त कमज़ोर हो जाए… या फिर बातचीत के दौरान मेरा ध्यान भटक जाए तो मुझे उस बात को याद करने को मौका ज़रूर देना. मैं कभी कुछ भूल बैठूं तो झुंझलाना नहीं… गुस्सा मत होना… क्योंकि उस समय तुम्हें अपने पास पाना और तुमसे बातें कर सकना मेरी सबसे बड़ी खुशी होगी… सबसे बड़ी पूंजी होगी.

अगर मैं कभी खाना खाने से इंकार कर दूं तो मुझे जबरन मत खिलाना. बुढ़ापे में सबका हिसाब-खिताब बिगड़ जाता है. मुझे जब भूख लगेगी तो मैं खुद ही खा
लूंगा.

एक दिन ऐसा आएगा जब मैं चार कदम चलने से भी लाचार हो जाऊंगा…उस दिन तुम मुझे मजबूती से थामके वैसे ही सहारा दोगे न जैसे मैं तुम्हें चलना सिखाता
था?

फिर एक दिन ऐसा भी आएगा जब मैं तुमसे कहूंगा – “मैं अब और जीना नहीं चाहता… मेरा अंत निकट है”. यह सुनकर तुम नाराज़ न होना… क्योंकि एक दिन
तुम भी यह जान जाओगे वृद्धजन ऐसा क्यों कहते हैं.

यह समझने की कोशिश करना कि एक उम्र बीत जाने के बाद लोग जीते नहीं हैं बल्कि अपना समय काटते हैं. 

एक दिन तुम यह जान जाओगे कि अपनी तमाम नाकामियों और गलतियों के बाद भी मैंने हमेशा तुम्हारा भले के लिए ही ईश्वर से प्रार्थना की.

अपने प्रेम और धीरज का सहारा देकर मुझे ज़िंदगी के आखरी पड़ाव तक थामे रखना. तुम्हारी प्रेमपूर्ण मुस्कान ही मेरा संबल होगी.

कभी न भूलना मेरे प्यारे बच्चों… कि मैंने तुमसे ही सबसे ज्यादा प्रेम किया.


Sunday, June 3, 2012

      अकेलापन
 यह अकेलापन
जैसे की बर्फीली फिजाएं ,
यह अकेलापन
जैसे अधूरी  कामनाएँ !
बस विरानियाँ ही ज़िन्दगी है
इनसे कोई कैसे बचाएं !
दूर तक सुनसान मंजर
हर तरफ बस रेत बंजर
जिनगी बोझिल सी लगती
देख न पता समंदर !
यह अकेलापन
जैसे की कोई एक परिंदा
 है कहाँ उसको जाना
उसका न कोई है ठिकाना
 बस हवाओं के सहारे
आसमा में ये बिचारे
 रात का  छाया अँधेरा
 अब कहाँ ढूंढे  बसेरा
बन जाये कोई सहारा
काब तलक न हो सवेरा !
 
यह अकेलापन
जैसे की उन्सुल्झी कथाएँ
जो कभी भी खत्म न हो
दे जो हर पल  ही व्यथाएँ
क्या हो मन की भावनाएं
जब कोई भी पास न हो
क्या करे कोई विरह
जब मिलन की आस  न हो !
 कैसा है अपना मुक्कद्दर
 जिसकी करुना हो न हम
 पर बस उसी की ठाणे
 ढूंढता उसको मैं दर दर !
यह अकेलापन
पीछा करती सी आत्माएं
 जो रूह बनकर डराती
बेचैनियों को संग लती
 इनसे तो बाचना है मुश्किल
हर घड़ी हर पल सताती !
यह अकेलापन 

जैसे कि कोई रात बैठी 
यादों की बारात बैठी
 दर्द के किस्से छुपाये
 एक अनकही सी बात बैठी !