Wednesday, June 19, 2013

प्रेरणास्रोत हैं बीएन मंडल




आजादी की लड़ाई में वे कई बार जेल गये और यातनाएं झोली. जमींदार परिवार से आने पर भी वे हमेशा गरीबों और शोषितों के बीच रह कर उन्हीं के हिमायती बने रहे. वे जीप और कार की सवारी छोड़ गांवों में बैलगाड़ी की सवारी करते थे. ऐसे वक्त में, जब पद और सत्ता पाने के लिए तमाम तरह के जोड़तोड़ की खबरें आ रही हों, यह जानना दिलचस्प होगा कि उन्होंने बिहार की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार में अहम पद लेने से इनकार कर दिया था. हम बात कर रहे हैं आजादी की लड़ाई के साथ-साथ देश में समाजवाद की स्थापना में अहम योगदान देनेवाले प्रखर नेता भूपेंद्र नारायण मंडल की, 

बीएन मंडल का जन्म मधेपुरा जिले के रानीपट्टी गांव में संपन्न जमींदार परिवार में 1 फरवरी, 1904 को हुआ. उन्होंने भागलपुर से स्नातक व पटना विवि से कानून की डिग्री प्राप्त ली. विद्यार्थी जीवन में ही वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गये थे. वकालत पेशे में आने पर 1942 में हजारों लोगों के साथ मधेपुरा कचहरी पर यूनियन जैक उतार कर हिंदुस्तान का झंडा फहरा दिया. उन्होंने उसी दिन वकालत छोड़ दी.

1937 में कई प्रांतों में आंतरिक सरकार की स्थापना हुई. कांग्रेस प्रगतिशील गुट के बड़े नेताओं ने सोशलिस्ट ग्रुप की स्थापना की, जिसके नेता जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, आचार्य नरेंद्रदेव, डॉ लोहिया आदि थे. भूपेंद्र बाबू इन्हीं नेताओं के साथ सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो समाजवादी सिद्धांतों के लिए संघर्षरत रहे. 1948 में सोशलिस्ट पार्टी कांग्रेस से अलग हो गयी. 1952 में उसने आम चुनाव लड़ा. कांग्रेस सत्ता में आ गयी. जेपी 1954 में राजनीति से संन्यास लेकर भूदान आंदोलन में चले गये और आगे चल कर सोशलिस्ट पार्टी भी दो भागों, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी, में बंट गयी. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को चुनाव चिह्न् झोपड़ी मिला और सोशलिस्ट पार्टी को बरगद का पेड़, जो सोशलिस्टों का 1952 में भी चुनाव चिह्न् था. समाजवादियों के एक ग्रुप यानी सोशलिस्ट पार्टी का नेतृत्व डॉ लोहिया कर रहे थे, जिसमें मधु लिमये, मामा बालेश्वर दयाल, बद्रीविशाल पित्ती, पीवी राजू, जार्ज फर्नाडीस, इंदुमति केलकर, राजनारायण, रामसेवक यादव एवं बीएन मंडल सरीखे नेता थे.

बीएन मंडल बिहार सोशलिस्ट पार्टी के आधार स्तंभ बने. इस पार्टी के नेताओं में अक्षयवट राय, सीताराम सिंह, बाबूलाल शास्त्री, तुलसी दास मेहता, पूरनचंद, उपेन्द्र नारायण वर्मा, भोला सिंह, श्रीकृष्ण सिंह, अवधेश मिश्र, जगदेव प्रसाद, रामइकबाल वरसी, सच्चिदानंद सिंह, जितेन्द्र यादव आदि थे. 1957 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी (पेड़ छाप) से बीएन मंडल एकमात्र विधायक चुने गये थे. पर, डॉ लोहिया की नीति, सिद्धांत सिद्धांत, स्पष्टवादिता और खुले एजेंडे को जनता ने खूब पसंद किया. बीएन मंडल ने अपनी प्रतिभा एवं सिद्धांतों के बल पर बिहार विधानसभा में अकेले रह कर भी समाजवादी विचारों को प्रचारित-प्रसारित करते हुए भाषण और विरोध के बल पर गरीबों और शोषितों के सवाल को बड़े पैमाने पर उठाया. 1962 में सोशलिस्ट पार्टी के सात विधायक चुने गये और 1967 में पेड़ छाप वाली संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) के 70 विधायक चुने गये. संसोपा बिहार में पहली गैर कांग्रेसी सरकार के प्रमुख घटक दल के रूप में उभरी. बीएन मंडल को बिहार की पहली गैर कांग्रेसी सरकार में प्रमुख पद दिया जा रहा था, लेकिन उन्होंने उस पद को लेने से इनकार कर दिया. उनकी राय थी कि जो व्यक्ति संसद सदस्य हो, विधानसभा सदस्य नहीं हो, उसे नैतिकता व सिद्धांत के आधार पर विधानसभा का कोई पद धारण नहीं करना चाहिए. डॉ लोहिया भी प्रारंभ से ही विधायिका के एक पद को छोड़ कर लालच या लोभ में दूसरे बड़े पद पर जाने को बेईमानी समझते थे. लोहिया जी के विचारों से बीएन मंडल सहमत थे. इसलिए संसद सदस्य होने के कारण वे मुख्यमंत्री या मंत्री पद लेने को तैयार नहीं हुए. उसी सरकार में महामाया बाबू मुख्यमंत्री और संसोपा की ओर से कपरूरी ठाकुर उप मुख्यमंत्री बने थे.
सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में भूपेन्द्र बाबू ने 1962 में कांग्रेस नेता ललित नारायण मिश्र को लोकसभा चुनाव में हराया था. वे 1966 और 1972 में राज्यसभा के लिए चुने गये. अपने संसदीय जीवन में उन्होंने राज्य और राष्ट्रहित में हमेशा गंभीरतापूर्वक अपनी राय दी. विदेशनीति और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर भी उनकी पैनी दृष्टि रहती थी.

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